डुगडुगी, छड़ी और मंतर

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एक जंगल में रहता था एक बंदर. मस्त कलंदर.सारा दिन बंदरपन करता फिरता. कभी सोते भालुओं के कान में चींख कर उन्हें डराता तो कभी डाल हिलाकर पक्षियों को उड़ाकर खिलखिलाता. अपनी शैतानियों से सबको हंसाता, सबको रूलाता.अपने इसी बंदरपने में एक दिन वह निकल आया शहर की तरफ. एक छत से कूदकर दूसरी छत और एक दीवार को लांघ कर दूसरी दीवार तक पहुंचते हुए वह जा पहुंचा एक चौराहे तक. वहां उसने देखा कि एक मदारी,एक हाथ में डुगडुगी और दूसरे हाथ में छड़ी लिए हुए एक बंदर को नचा रहा है.मदारी डुगडुगी बजाता और बंदर ठुमके लगाता.मदारी