राजनारायण बोहरे के साहित्य में सामाजिक समरसता

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शोध आलेख राजनारायण बोहरे के साहित्य में सामाजिक समरसता डॉ पद्मा शर्मा एको देवः सर्वभूतेशू गूढः सर्वव्यापी सर्वभूतान्रात्मा प् कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च प्प् (श्वेताश्वतरोपनिशद्,6.11) सामाजिक समरसता से तात्पर्य समानता, सम्मान एवं सौहार्द्र का भाव है। संगीत के क्षेत्र में प्रयुक्त किये जाने वाले शब्द (भ्ंतउवदल) समरसता का तात्पर्य मूलतः विशिश्ट ध्वनियों के बीच समुचित संयोजन से है। जिससे संगीत की मधुर ध्वनि प्राप्त होती है। उसी तरह सामाजिक समरसता का तात्पर्य यह कहा जा सकता है कि समाज के विभिन्न धर्मों, जातियो, विश्वासों, विचारों आदि लोगों की विशिश्टता के बीच उनके बीच समुचित