कहानी-- वंचित राजेन्द्र कुमार श्रवास्तव, ‘’यही ऑफिस है.......शायद कॉलोनाइजर का!’’ ‘’हेल्लो, दानेश्वरजी।‘’ ‘’हॉं.....। आपको मेरा नाम?’’ ‘’बड़े साहब ने बताया,......आप ही का वेट कर रहे हैं; अन्दर।‘’ लगता है, यह यहॉं का सेफ्टी ऑफिसर है। लम्बा-लछारा; हृष्ट-पुष्ट एवं अलर्ट! मैं उसके पीछे-पीछे चल दिया, ‘’बड़े साहब का नाम तो होगा कुछ?’’ ‘’हॉं है ना, रामराज.....’’ मुझे तुरन्त याद आया, इसी से तो मोवाईल पर बात हुई थी!’’ शानदार, वेलफर्निशड ऑफिस में प्रवेश करते ही; मेरा ऐसा वेलकम हुआ, जैसे मैं कोई अतिविशिष्ट, व्ही.आई.पी. या कोई सेलिब्रेटी हूँ। स्वभाविक,