गवाक्ष - 19

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गवाक्ष 19== कॉस्मॉस के इस बचपने से सत्यनिधि के चेहरे पर फिर मुस्कुराहट पसर गई। उसे प्रत्येक बात में उत्सुकता दिखाने वाला, यह बालक सा लगने वाला कॉस्मॉस बहुत प्यारा सा लगने लगा था। अपनी बातों को उसके साथ बाँटना उसे सुख दे रहा था। 'क्या दूसरे ग्रह के ऐसे वासी जो धरती के लोगों के प्राण हरकर ले जाते हों, इतने प्यारे हो सकते है?'सत्यनिधि सोच रही थी | "सफ़लता दर्पण की भाँति है, जैसे दर्पण टुकड़ों में बँट जाने के पश्चात भी अपने प्रतिबिम्बन की योग्यता नहीं छोड़ता उसी प्रकार सफ़लता इतनी आसानी से प्राप्त नहीं होती और जब हो जाती है तब जीवन में स्थाई स्थान बना लेती है