’’कठघरे’’ इतिहास का प्रतिफलन और जिजीविषा का संकट ’’अगर आप इतिहास और भूख की सापेक्षता में आदमी की नैतिकता का विवेचन करें तो चौंकाने वाले नतीजों पर पहुँचेगे।- ’’कठघरे’’ वह इतिहास जिससे कुछ नियम निकलते है, जिसके प्रकाश में हम अपने वर्तमान को समझ सकते हैं। हमारा वर्तमान हमारे इतिहास का प्रतिफलन है।- ’’कठघरे’’ अपनी नियति में अंततः हम अकेले होते हैं। उस हाल में हमारे पास सिर्फ हमारी आत्मा होती है।- ’’कठघरे’’ कहानियों की तरह वल्लभ सिद्धार्थ का उपन्यास ’’कठघरे’’ भी रचनात्मक पूर्णता की चाह में अनेक प्रारूपों और परिवर्तनों से गुजरा है। उन्होंने