उन्होंने मन ही मन में कहा और सबके पास आकर बैठ गए।वामन देव के बैठने पर उनकी लंबी दाढ़ी जमीन को छू रही थी।बद्री ने उन्हें भी सत्तू खाने को दिया।नट्टू कुछ देर उन्हें देखता रहा। फिर बोल पड़ा।" गुरूजी! आप आज्ञा दें तो मैं कुछ कहूँ।""हाँ हाँ बोलो न..." गुरूजी हँसे।" महाराज ! आखिर ई सब का हो रहा है। हम आखिर कहाँ जा रहे हैं, हमे करना क्या है? खाना और पानी भी अब ज्यादा बचा नहीं है।"कहकर वह चुप हो गया।"...और किसी के भी मन में यह विचार आ रहा है?"गुरूजी मुस्कुराए और सबकी तरफ देखा।" बोलो