हार गया फौजी बेटा - प्रदीप श्रीवास्तव भाग 5 हम जल्दी ही वापस बाहर आकर अपनी खटिया पर बैठ गए। पिता भी मेरे साथ बैठे थे। हम दोनों बिल्कुल शांत थे। खाना-पीना सब खत्म होने के बाद बाहर पड़े बिस्तरों पर सब लेट गए। मेरा बिस्तर पिता के बगल में ही था। धुएं से मच्छरों का प्रकोप कम हो गया था। मगर जो थे वह परेशान करने के लिए काफी थे। एक छोड़कर बाकी सारी लालटेनें बुझा दी गयीं थीं। काली चादर हर तरफ गहरी हो चुकी थी। आसमान में चमकते तारे न जाने क्यों अचानक ही बचपन की ओर