हार गया फौजी बेटा - प्रदीप श्रीवास्तव भाग 4 बूढ़ी आंतें भूख से ऐंठने लगीं, जब सहन शक्ति जवाब दे गई और उठने की भी शक्ति न रही तब बेशर्मों की तरह बड़ी बहू को आवाज़ दी। कई बार आवाज देने पर झनकती - पटकती आकर पूछा ‘क्या है?’ मैंने बताया सुबह से कुछ नहीं खाया बहुत भूख लगी है, खाना दो। इस पर वह भुनभुनाती हुई बोली ‘अब इस समय खाना कहां है, देखती हूं कुछ है क्या?’ थोड़ी देर में एक प्लेट में दो पराठा और करेला की भुजिया सब्जी नाममात्र को रख गई। एक गिलास पानी भी।