केसरिया बालम - 19

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केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 19 बदली देहरी, बदले पैर बरस पर बरस बीतते रहे। आर्या अब यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिये बाहर चली गयी थी। अब धानी घर में अकेली थी। परिवार के नाम पर बेकरी के सहकर्मियों का बाहरी परिवार था। रेयाज़ तो अब उनके बीच नहीं था, ग्रेग-इज़ी थे। अच्छे और बुरे दिनों के साथी। जब कभी सब एक साथ बैठते तो रेयाज़ को जरूर याद करते। इज़ी की बेली डांसिग को घुटनों के दर्द ने अपने अंदर छुपा लिया था। कुर्सी पर बैठे-बैठे आँखों व हाथों को चलाती संगीत का मजा लेती। अपनी अलग-अलग चिंताओं की