"ओ देबू, उठ न। कल 15 अगस्त है, आज चौराहे के पास खाना और सामान बंटेगा।" राजू ने झिंझोड़ते हुए देबू को उठाने का प्रयास किया।देबू ने आंखें खोलीं। दिन चढ़ने लगा था। फुटपाथ पर सोते-सोते सात साल के देबू की कमर अकड़ने लगी थी। रात को बारिश आने से उसे मेट्रो के एक पिलर के बेस पर सोना पड़ा था, ठंड के मारे ठीक से नींद भी न आई थी।देबू उठकर खड़ा हो गया। एक महीने पहले उसका पूरा परिवार था, मां, बाप और बड़ा भाई। सब वहीं फुटपाथ पर रहते थे। कहीं कोई रैली थी, तो सब को