चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 4 ‘ओह, तो ये बोलिए न!’ पिन्टू इस बार सचमुच मुस्कराया। तारा कुमारी मुस्कराई नहीं। लेकिन उसके मुखमंडल पर व्याप्त चंचलता गजब ढा रही थी। पिन्टू ने मोबाइल का कवर खोला। पफोरसेप से कुछ चेक किया, पिफर बोला, ‘टाइम लगेगा। मोबाइल छोड़ जाइए तो बना देंगे।’ ‘ठीक है। चार बजे तक बना दीजिएगा।’ स्वयं ही मियाद तय करती तारा कुमारी पलटी और सड़क किनारे खड़ी अपनी साइकिल की ओर बढ़ गई। पिन्टू अवाक तारा कुमारी को देखता रहा। सपफेद सलवार, ब्लू कुर्ता, सपफेद चुन्नी में चपल चंचला तारा कुमारी अपनी दो चोटियों को