राम रचि राखा तूफान (1) "वापस होटल चलें? देखो सब लोग निकलने लगे हैं। लगता है पार्क बंद होने का समय हो गया है।" विक्टोरिया मेमोरियल के उद्यान में एक पेड़ के नीचे बेंच पर बैठी हुई सप्तमी ने सौरभ से कहा। "नहीं मम्मा...अभी नहीं।" सौरभ के कुछ कहने से पहले ही अंश बीच में बोल पड़ा। वह बेंच के चारों ओर चक्कर काट रहा था। उसे बहुत आनंद आ रहा था। सूरज डूब चुका था। पेड़ पर चिड़ियों की चहचहाहट बढ़ गयी थी। हवा में हल्की ठण्ड थी। दिसंबर आरंभ हो गया था। "मैं तो बर्थडे बॉय की इच्छा के अनुसार काम करूँगा।" सौरभ ने मुस्कराते हुए कहा।