उर्वशी ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘ 16 दिल्ली एयरपोर्ट से कार में बैठकर वह लोग आगरा चल दिये। अब बस थोड़ी देर का साथ बाकी था। शिखर बहुत व्याकुल थे, पर कुछ कर नहीं सकते थे। उनके वश में होता तो कभी उसे जाने नहीं देते। वह खामोश थी, क्या कहे ? कहने का न माहौल था, न परिस्थिति, न कोई अधिकार। जीवन एक प्रश्नचिन्ह बनकर सामने था। " उर्वशी, हम फिर पूछ रहे हैं, कि अब क्या करेंगी आप ?" " पता नहीं।" " आप क्यों जिद पर अड़ी हैं ? हम आपको परेशान नही देख सकते। हम आपके लिए