ग्रेजुएट बहू

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"ग्रेजुएट बहू" हर रोज बहू अपने ससुर को घंटों बागवानी करते देखती तो उसे मन ही मन झुंझलाहट होती । 'इन बूढों को भी कोई काम नहीं होता ना जाने पूरा दिन इन पेड़ पौधों के बीच रहना इतना अच्छा क्यों लगता है।' पर उसकी आँखो से एक बात छुपी नहीं थी कि वहाँ हर प्रकार के सुंदर फूल व थोड़ी बहुत सब्जियाँ खूब अच्छी मात्रा में उपजती थी। साथ ही उसके स्वसुर के आँखो में वो सागर सी शांति भी विराजमान थी जो उसने बरसो पहले महसूस किया था। आज अचानक उसके हृदय में अतीत की बातें उभरने