विद्रोहिणी अपाला ने सूर्य की आराधना में ऋचाओं की रचना की । उन ऋचाओं के सस्वर पाठ से जलाभिषेक कर भुवनभास्कर का आवाहन किया । सूर्यदेव प्रकट हुए । वनप्रांतर में से कुछ जङी-बूटियाँ अपाला को वरदान में दी । अपना आशीर्वाद दे अंतर्ध्यान हो गये । अपाला ने उन औषधियों का परिष्कार व अनुसंधान कर अपने रोग से मुक्ति पायी । दूषित ,रोगी काया कंचनवर्णी हो दैदीप्यमान हो उठी थी ।हवा के वेग से समाचार फैला । दूर-दूर से ऋषि अपाला के चरणवंदन के लिए आने लगे । उन्हीं में ऋषिकुमार अरुण भी था ।“ देवी