तलाश.

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तलाश दिन काफी चढ़ गया था | शायद सुबह के आठ बज गए थे ! माँ कब से उसे आवाज दे रहीं थीं, ‘अतुल, उठ बेटा | आज तो धंधे का दूसरा ही दिन है, इतना आलस करेगा तो कैसे चलेगा ?’ लेकिन अतुल उठने का नाम नहीं ले रहा था | माँ के बुलाने पर हाँ, हूँ कहकर फिर करवट बदल लेता था | हमेशा पांच बजे उठने वाला अतुल इतना कैसे सो रहा है, यह माँ के लिए चिंता का विषय था | वह कई बार उसका माथा छूकर देख आई थीं कि कहीं बुखार तो नहीं, लेकिन