राम रचि राखा - 1 - 10

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राम रचि राखा अपराजिता (10) मैं अनुराग को लेकर अब थोड़ी सतर्क हो गई थी। चाहती थी कि ऐसी स्थितयाँ न उत्पन्न हों जिससे हम दोनों को किसी तरह का भी मानसिक कष्ट हो। सामान्य स्थितियों में वह बहुत सदय होता था। मेरा बहुत ख़याल रखता था। बहुत प्यार करता था। किन्तु नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था। उस दिन हम एक मूवी देखने गये थे। टिकेट के लिए लम्बी कतार थी। हमारे पास पहले से ही टिकेट था। अभी मूवी शरू होने में थोड़ा समय बाकी था। टिकेट खिड़की से थोड़ी दूर हटकर एक चबूतरा सा था। हम उसपर