कलाकार मोहनसिंह बचपन से ही कलात्मक अभिरूचि का था और दूसरों की नकल करना उसका प्रमुख खेल था। जब वह पाठशाला जाने लगा तो उसके शिक्षकों ने उसके इस गुण को पहचाना और वह विभिन्न स्कूल में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में भाग लेने लगा। उच्च कक्षाओं तक पहुँचते-पहुँचते वह एक अभिनेता के रुप में अपनी बस्ती और अपने महाविद्यालय में लोकप्रिय हो चुका था। उसका महाविद्यालय उसके गांव से अधिक दूर नहीं था। एक बार उसके गांव से दूर की एक बस्ती से एक सज्जन उसके महाविद्यालय में आमंत्रित किए गए। उनका नाम था रासबिहारी शास्त्री और