होने से न होने तक 46. मैं आण्टी के पीछे पीछे सीढ़ियॉ उतर कर नीचे आ गयी थी। हम दोनों को आता देख कर ड्राइवर रामसिंह बाहर निकल आया था। अपने माथे से हाथ छुआ कर उसने मुझे अभिवादन किया था और आण्टी के लिये दरवाज़ा खोल कर खड़ा हो गया था। न जाने क्यों मैं उससे निगाह नही मिला पायी थी। न जाने कितनी बार यश की कार में वह मुझे छोड़ने या लेने आ चुका है। तब वह ऑखों मे स्वागत और सम्मान का भाव लिये बिल्कुल इसी तरह से मेरे लिये यश की कार का दरवाज़ा खोल