चबूतरे का सच

  • 2.9k
  • 764

चबूतरे का सच लगता है बैंड सिर पर बज ही जायेगा। तमाम कोशिश बेअसर हो गई। छोटी से कुछ उम्मीद बढ़ी थी उर्मिला को। किन्तु आज वो भी छिटक गई। कह रही थी, ‘‘दीदी, तुमको काकी के यहाँ रहने की जगह तो मिल ही गई है, अब इन लोगों से क्यों उलझती हो ? जेठ जी तुमको वहाँ से तो नहीं निकाल रहे हैं। सोचो, अगर जेठ जी अड़ जाएँ तो काका-काकी तुम्हें रख पाएँगे क्या ? इ़़ज्ज़त से ससुराल के घर में ही तो पड़ी हो। संतोष करो। सपाट आवाज़ में कहे गए इन शब्दों में किसी प्रकार का