मैं, मैसेज और तज़ीन - 1

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मैं, मैसेज और तज़ीन - प्रदीप श्रीवास्तव भाग एक पिछले करीब डेढ़ बरस कुछ ठीक बीते थे। खाने-पीने रोज की ज़रूरतों की चीजें ज़्यादा आसानी से मिल जा रही थीं। हम दोनों बहनों, भाई की स्कूल की फीस भी आसा0नी से जाने लगी थी। इसके साथ ही एक और बात हो रही थी कि मेरी पढ़ाई अब डिस्टर्ब होने लगी थी। क्योंकि अब मेरा थोड़ा बहुत नहीं कई-कई घंटे, दिन हो या रात फ़ोन पर बातें करते बीतता था। रात चाहे दस बजे हों या ग्यारह-बारह या फिर दो मेरे मोबाइल की घंटी बजती रहती थी। मैं आने वाली इन