माँ श्यामा सुबह-सुबह नहा-धोकर एक लोटे में जल और डलिया में फूल लेकर मन्दिर चली जा रही थी। यह उसकी प्रतिदिन की दिनचर्या थी। अचानक उसे किसी शिशु के रोने का स्वर सुनाई दिया। उसने उस ओर देखा जिस ओर से वह आवाज उसे सुनाई दी थी। वहां उसे कोई भी नहीं दिखा पर आवाज आ रही थी। उसके पैर किसी दैवी प्रेरणा से उस ओर मुड़ गए। मन्दिर के पास की उस खुली जगह में कपड़ों में लिपटा हुआ एक शिशु पड़ा था। आसपास कोई नहीं था। शिशु रो रहा था। श्यामा ने उसे अपनी गोद