कहानी सिस्टम -आर.एन.सुनगरिया सत्रह साल बाद। मोटे कॉंच के द्वार को पुश करता हुआ बैंक में प्रवेश करता हूँ, तो ऑंखें चौंधिया जाती हैं। सारा नज़ारा ही अत्याधुनिक हो चुका है। सबके सब अलग-अलग पारदर्शी केबिन में अपने-अपने कम्प्यूटर की स्क्रीन पर नज़रें गढ़ाये तल्लीनता पूर्वक व्यस्त हैं। किसी को किसी से कोई वास्ता नहीं। ऐसा लगता है बैंक की सम्पूर्ण कार्यप्रणाली स्वचलित हो गई है। कोई-कोई काम मेन्युअल हो रहे हैं। वह भी पूर्ण शॉंतिपूर्वक। मैंने प्रत्येक यंत्रवत् व्यक्ति को गौर से देखा—एक भी परिचित नहीं। सभी युवा एवं सुसम्पन्न लगते