सोमनाथ जी को कार्यालय से घर आए हुए आधा घंटा हो चुका था! आज वह हाथ मुँह धोकर, कपडे बदलकर अन्य दिनों की तरह बैठक में नहीं बैठे थे बल्कि अपने शयनकक्ष में पलंग पर पीठ टिकाकर बैठे थे! उनकी पत्नी रसोई में चाय बना रही थी! यदि अन्य दिनों की बात होती तो इतनी देर से चाय नहीं मिलने के कारण सोमनाथ जी घर सिर पर उठा लेते! "कितनी देर हो गई! एक चाय तुम से समय पर नहीं दी जाती! आदमी दिन भरकर का थका हारा, बस में धक्के खाकर घर पहुंचे! दफ्तर की थकान उतारने के लिए