अगस्त का आख़िरी हफ़्ता था। बारिश बहुत कम हुई थी। बादल आसमान पर ठहरे थे। बरसने के लिए उन्हें किसी ख़ास चीज़ की तलाश थी, जो शायद ज़मीन पर नहीं थी। हम उन्हें बरसने पर मजबूर नहीं कर सके थे। हाँ, उन्हीं बादलों से होती हुई कोई सूचना हमारे मोबाईल तक पहुँच सकती थी।मैं दिल्ली में था। मोबाइल की घण्टी बजी। झाँसी से भईया का फोन था। पिताजी को दिल का दौरा पड़ा था। भईया ने बताया था पिताजी कराह रहे थे, छाती पर कई मन बोझ बता रहे थे। उनके फेफड़ों में हवा नहीं जा रही थी और रह-रहकर