उम्मीद.

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उम्मीद क्या सबके साथ ही ऐसा होता है ? जब धडकनों के स्पंदन चुगली करने लगते हों, आँखें हर पल बेचैन सी कुछ खोजती हों, लबों पर आकर हर बात दम तोड़ देती हो और नींद तो जैसे जन्मों की दुश्मनी निकालती हो................दिन के हर पल में सिर्फ एक ही मूरत का दीदार होता हो...........तो क्या कहते हैं इसे.............कैसे ख़त्म होगी ये बेचैनी? मेरे साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है ? अब किसी से कहूँगा तो मुझे बीमार समझेंगे या मेरी हँसी उड़ायेंगे ? अब क्या करूँ? ऐसा सोचते -सोचते रोहित बेचैन हो गया. जब से वो पूजा से मिला