राम रचि राखा - 1 - 6

  • 7.1k
  • 2k

राम रचि राखा अपराजिता (6) अक्टूबर आधा बीत चुका था। रात में हवाएँ शीतल होने लगी थीं। बरसात की उमस पूरी तरह ख़त्म हो चुकी थी। अनुराग से मिले लगभग साढ़े तीन महीने हो चुके थे। इस बीच हम एक दूसरे को पूरी तरह न सही पर बहुत हद तक समझने लगे थे। एक दूसरे की कही को मानने लगे थे और अनकही को जानने लगे थे। जब वह साथ होता तो मन खिल उठता था। मन में एक अतिरिक्त उर्जा का संचार होने लगता था। कभी कभी मैं उससे किसी बात के लिये जिद कर बैठती थी। कभी उसे छेड़ने लगती