सब्र 

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सब्र पहले बुजुर्गों से सुना था जिंदगी इम्तिहान लेती है, तब लगता था कि लोग भी क्या क्या बोलते हैं, भला जिंदगी भी कहीं इम्तिहान लेती है । अल्हड़पन था बचपना था ना समझ था शायद इसलिए बहुत बातों का मतलब समझ ही नहीं पाता, बच्चा कह कर बच निकलता था । परंतु अब लाले दी जान खंबा जैसा हो गया हूं , कुछ गुण तो आना लाजमी है समझदारी भी आई है पर इन सब में गौर करने वाली बात है । "सब्र" जिसको देखिए सब हड़बड़ी में है सबको आज ही सब कुछ पाना है ,चाहे जिस भी