भुइंधर का मोबाइल - प्रदीप श्रीवास्तव भाग 4 अंततः मुझे कमरे के अंदर झांकने का रास्ता नजर आ गया। मैंने खाने वाली मेज के पास लगी कुर्सियों में से एक खींच कर उस खिड़की के पास लगाई जिसके ऊपरी हिस्से के पास पर्दा कुछ इंच हटा था और वहां से अंदर देखा जा सकता था। मेरे पैर थरथरा रहे थे। अम्मा पूरे बदन में मैं पसीने का गीलापन महसूस कर रही थी। दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मगर जिद के आगे सब बेकार था। मैं अपने पति-परमेश्वर की रक्षा के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। इसीलिए कुर्सी