भोर हो रही थी। रात समाप्त हो चुकी थी, दिन निकल रहा था। फौजी जासुस केदार सिंह के घर में हलचल थी। केदार सिंह खुद तथा उनके दोनों बेटे अजय और अभय बहुत जल्दी जाग गये थे,एवं बार-बार- आसमान की ओर देख रहे थे। वे दोनों झटपट नहा-धोकर निपटे और प्रोफेसर सर्वेश्वर दयाल के घर की ओर दौड़ पड़े, जबकि केदार सिंह ने अपना टेलीविज़न शुरू कर लिया था। सुबह के छह बजे थे।