मैत्रेयी पुष्पा का ‘‘चाक’’ उपन्यास

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मूल्यांकनµ कृष्ण बिहारी पाण्डेय अधुनातन साहित्य के सूक्ष्मदर्शी आलोचक द्वारा मैत्रेयी पुष्पा के बहुचर्चित उपन्याय ‘‘चाक’’ का आकलन चाकः प्रजापतित्व का अभिनव पाठ यह रचनात्मकता की नियति है या लेखक की सीमा कि किसी लेखक की विभिन्न कृतियां प्रायः विकास का उत्तरोत्तर ग्राफ नहीं बनाये रख पातीं अथवा समान रूप से महत्वपूर्ण नहीं हो पातीं। यदि लेखन परिमाण में विपुल हो’ तब तो यह आशंका और भी अधिक हो जाती है। इसेस रचनाकार की विफलता मानना संभवतः न्यायसंगत नहीं हो क्योंकि सृजन कर्म स्वयं में ही महत्वपूर्ण होता है तो वह अपनी अलग पहचान बना लेता है। इस