होने से न होने तक 41. सुबह देर से ही ऑख खुली थी। मानसी जी शायद रसोई घर में हैं। सूजी भुनने की सोंधी सी महक चारों तरफ फैली हुयी है। शायद मानसी जी हलुआ बना रही हैं। अचानक शिद्दत से यश की याद आयी थी। क्या कर रहे होंगे यश? मेरे बारे मे सोच रहे होगे क्या ?मन में अचानक कितना कुछ घुमड़ने लगा था। वे बातें, वे यादें, जिनका कोई अर्थ नहीं। चाय नाश्ता कर के हम लोग घर के पीछे के ऑगन में बैठ गये थे। मानसी जी अन्दर से अख़बार ले आयी थीं और दोपहर में