तोता उवाच: अन्नदा पाटनी चिलचिलाती धूप, सुनसान सड़कें, किनारे पर खड़े इक्का दुक्का पेड़ जिन पर हरे पत्तों की दो चार डाल और बाक़ी ठूँठ । गरम हवा में लू के चपेटे । तभी एक तोता और मैना आकर हरी डाल पर आ बैठे । मैंना ने तोते को देखा, बिल्कुल बदहवास हो रहा था । साँस फूल रही थी, ताप से बेहद बेचैन हो रहा था । हालत तो मैंना की भी बेहाल थी पर उतनी नहीं । उसने तोते का मन बहलाने के लिए कहा,” कुछ सुनाओ ना, कुछ अपबीती या जगबीती ।" तोता बोला,” हमेशा तो जगबीती