बेआवाज़ तमाचा “उफ़ दीदी कितना पढ़ोगी ?” छोटे भाई के सवाल पर एकता ने मुस्कुरा कर कहा, “बिट्टू किताबें तो मेरी जान हैं | तू भी अपना समय बर्बाद ना कर | जा गणित की किताब ले आ, तुझे भी पढ़ा ही दूँ |” “न बाबा ना ! मुझ पर ये जुल्म ना करो” कह कर बिट्टू भाग गया और एकता फिर से अपनी किताबों में डूब गयी | इलाहाबाद में पली बढ़ी एकता की साँसों में इलाहाबादी अमरूदों की खुशबु मिली हुई थी और और जुबान में अमरुद् सी मिठास | माँ -बाबूजी के प्यार का संगम, घर में रोज ढेर सारे रिश्तेदारों