गोमती एक नदी का नाम है कैलाश बनवासी मौका पाते ही मैंने बिसाहिन बाई से पूछ लिया, “ कइसे, ये गोमती चलही नहीं?” बिसाहिन बाई खोली में पानी पी रही थी, गिलास के ऊपर दीखती उसकी आँखें मुझे गहरी नज़रों से घोर रही थीं—मेरे हरामीपन को तौलती हुई. गिलास मटके पर गुस्से से पटकती हुई एकदम फैसलाकुन अंदाज में बोली, “नहीं, ये नहीं चलेगी. ये वैसी नहीं है !” “फिर कैसी है?” मैंने बेशर्मी से हँसकर पूछा. बिसाहिन बाई तुनक गयी, “हम का जानेंगे बाबू वो कैसी है. फिर भी हम इतना बता देते हैं ये ऐसी-वैसी नहीं है. घर-गिरस्थी