जिंदगी की शाम - सही

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जब दुःख बढ़ जाता है तो अपने ही याद आते हैं, पर जब दुःख का कारण अपने प्रिय जन ही हो जाते हैं, तो फिर उसका क्या उपाय है ? जिंदगी की शाम सूर्य अपनी अरुणिमा से पश्चिम दिशा को अंतिम किरणें समर्पित कर रहा था कलरव करते हुए पक्षियों के समूह अपने घोंसलों की ओर जा रहे थे शाम के झुटपुटे में सब कुछ धूमिल सा दिखाई दे रहा था पैंसठ वर्षीया प्रभावती देवी भी सूर्यास्त के दृश्य को बड़े ध्यान से देख रही थीं उन्हें अपनी जिंदगी भी शाम जैसी लग रही थी