बेटियां

  • 2.8k
  • 857

बेटियां भवानी प्रसाद की आंखों से नींद कोसों दूर थी। शरीर पलंग पर था मगर दिल कहीं ओर। वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर वे करें तो करें क्या? उनके सामने एक तरफ कुआं-दूसरी तरफ खाई थी। एक तरफ उनकी आत्मा उन्हें धिक्कारती कि उन्होंने मोह-माया में फंसकर अपनी तमाम उम्र की पूंजी गंवा दी। अपने वे सिद्धान्त जिनके लिए वे बड़े अधिकारियों व पूंजीपतियों की भी परवाह नहीं करते थे, आखिर क्या थे! जिन्हें निभा कर उन्होंने जमाने भर की नाराजगी और भीषण परेशानियां झेली थी। अब वे पूरी तरह कंगाल हैं! आदर्श के रूप में देखने