स्वाधीन वल्लभा

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स्वाधीन वल्लभा गीताश्री प्रेम के आस्वाद के लिये शब्दों की भला क्या जरूरत? शायद दुनिया की तमाम भाषायें, प्रेम के किसी हिमनद से निकली होंगी। एक दुभाषिये के तौर पर नीलंती की जिस अस्फुट भाषा को मैने जाना और समझा उसने मेरे दुभाषिये होने के सारे मायने बदल दिये। मुझे अच्छे खासे पैसे मिले थे, इस काम के, और साथ में सख्त हिदायतें भी कि मुझे काम को कैसे अंजाम देना है। एक प्रेम की कठिन कथा में मुझे लगभग ढकेल दिया गया था। मन कह रहा था, उस वक्त कि तुम गलत कर रही हो...दिमाग कह रहा था तुम्हें