याददाश्त वापस लौट रही है...   

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आदमकद शीशे में तरन्नुम ने खुद को सिर से पैर तक निहारा, फिर सधे हाथों से आंखों में सुरमा पिरोया। काजल की डोरी से आंखें चमक उठी थीं। बालों को हल्का-सा बाउंस दे कर उसने टेबल पर पड़ा पर्स उठा लिया और लहराती हुई कमरे से बाहर निकल आई। “बाइ अम्मी,” हाथ हिलाकर दरवाजे से निकलने लगी कि अम्मी ने रोक लिया,“जरा सुनना तो एक मिनट।” “लगा दी न टोक।” तरन्नुम ठहर गई। तरन्नुम का ऊपर से नीचे तक मुआयना करते हुए अम्मी अटक-सी गईं, “बाल खुले क्यों रख छोड़े हैं?” तरन्नुम जब तक कुछ कहती तब तक अम्मी ने