गुरु

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गुरु ------ भोर की सुनहरी रूपाली किरणें अनु के मन में एक नया संदेश प्रसरित करती हैं।बड़ा भला लगता है उसे ब्रह्म मुहूर्त के सूरज से कानाफूसी करना ।बचपन से ही माँ-पापा सूरज के नमूदार होने से पहले ही आवाज़ें लगाना शुरू कर देते | उन दिनों मीठी,प्यारी नींद में से जागना कितना खराब लगता था ,मुँह बनाकर कई बार करवटें लेते हुए ; "थोड़ी देर सोने दो न!" कई बार दुहराया जाता किन्तु वो माँ थीं ,वो उसे उठाने के दूसरे गुर भी तो जानती थीं | घर में एक ग्रामोफ़ोन हुआ करता था जिसकी ड्राअर में