बाऊजी बाआवाज़

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मौलिक, अप्रकाशितकहानीबाऊजी बाआवाज़उन्होंने भी कब सोचा था कि उनकी ये चुप्पी उन्हें ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करेगी जहाँ उन्हें अपनों के खिलाफ ही कठोरतम निर्णय लेने को मजबूर होना पड़ेगा। अपने स्वभाव के विपरीत काम करना किस कदर मुश्किल होता है! सहनशक्ति की भी एक सीमा होती है, सीमारेखा पार होते ही विस्फोट निश्चित है, यही कुदरत का नियम है। अपनों के दिए ज़ख्मों का इलाज भी उन्हें स्वयं ही करना था।बाऊजी की चुप्पी को लेकर शायद ही कोई होगा जिसने कभी-न-कभी टोका न हो! बाऊजी यानी रघुवीर प्रसाद सिंह। उनका स्वभाव ही ऐसा था। कम-से-कम शब्दों में बात