अंततः

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अंततः 1दार्जिलिंग के इस ओपन एयर रेस्टोरेंट में बैठे-बैठे बर्फ से आच्छादित कंचनजुंगा पहाड़ियों का सौंदर्य आत्मसात कर ही रही थी की सेल फोन बज उठा । स्नेहा को पाकर मैंने व्यग्रता से फोन उठाया मेरे कुछ पूछने और कहने से पूर्व भी वह कह उठी , ' कैसी हो ममा , डैड कैसे हैं , कैसा लग रहा है वहाँ ?'' हम ठीक हैं । तुम्हारे डैड कॉफी लेने गए हैं , आते ही होंगे । तुम और अभिनव कैसे हो , कब लौटे सिंगापुर से ? फोन क्यों नहीं किया ? हमने कई बार फोन किया पर अनरिचेबिल