तीन औरतों का घर - 2

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तीन औरतों का घर - भाग 2 कही मैं बस सोचता ही रह जाऊं और हामिदा का डोला कोई और ही ले जाए!" साबिर को ये सोचते ही कंपकंपी छूट गई! उस दिन साबिर के दिल को मानो कही चैन नहीं मिल रहा था! कभी वह दुकान में रखी सुराही से पानी निकालकर गट गट पानी पीने लगता कभी बीड़ी सुलगाने लगता और कभी नुक्कड़ की चाय की गुमटी से चाय मंगाता! उसके दिलो दिमाग पर हामिदा हावी थी! वह सोचता 'कहीं मेरा प्यार एक तरफ़ा तो नहीं! हामिदा के दिल में भी उसके लिए कुछ ख़ास हैं या नहीं!