केसरिया बालम - 1

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केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 1 “केसरिया बालम पधारो म्हारे देस” बचपन से ही गाते हुए, अंदर ही अंदर, गहरे तक यह गीत रच-बस गया था। इसके तार दिल से जुड़े थे, मीठा लगता था, कानों में शहद घोलता हुआ। उस मिठास से सराबोर मन हिलोरें लेता रहता, सावन के झूलों जैसी ऊँची-ऊँची पेंग लेकर। इस छोर से इस छोर तक। माँसा कहती थीं – “किसी की नज़र न लगे तुम दोनों की जोड़ी पर।” बाबासा मुस्कुराते, अपनी बेटी-कँवरसा पर निगाह डालते, संतोष की साँस लेकर कहते – “थारी माँसा ने बता दे कि धानी तो अमेरिका जा रही है,