फ्रैंड रिक्वैस्ट

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फ्रैंड रिक्वैस्ट मन पर दस्तक हुई .. मैंने धीरे से कपाट खोले .. गर्दन बाहर निकाली.. सामने देखा, इधर - उधर झाँका .. कोई नहीं था .. माने प्रत्यक्ष कोई नहीं था ..पर कुछ अनुभव हो रहा था ..परोक्ष जो था वह बहुत प्यारा था .. बहुत मासूम ..। कुछ अमूर्त था .. जो छू कर बहे जा रहा था और मेरा आस पास महक उठा था रंग थे ..कुछ पूरे, कुछ अधूरे ..। तितलियाँ थीं .. जो इन रंगों को सृष्टि के हर छोर पर छिड़क कर चुपचाप मेरे पास आ बैठी थीं सांझ की गोधूलि