"निकले बड़े बेआबरू होकर... "कवि केदारनाथ सिंह ने कहा है कि “जाना” हिंदी की सबसे खतरनाक क्रिया है | लेकिन लोग जा रहे हैं | लोग ठीक वैसे ही जा रहे हैं, जैसे वे कुछ हप्तों, महीनों या सालों पहले आये थे | ट्रेनों में ठूस-ठूसकर | सामान्य दर्जे के डिब्बों में या कभी-कभार स्लीपर वाले कम्पार्टमेंट में | सीट रिज़र्व होने के बावजूद उस पर कई-कई लदकर और उसके नीचे फर्श पर गठरी-मोटरी की तरह लोटते-पोटते | आने-जाने वाली सवारियों के पैरों से टकराते या कुचले जाने पर भी कुछ न बोलने या थोड़ा-सा बुदबुदाकर चुप हो जाने के