गंध-मुक्ति

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गंध-मुक्ति गीताश्री अस्पताल के कारीडोर में बैठे बेठे सपना ऊब गई थी। लगातार लोगों की आवाजाही लगी थी। अपनी पारी का इंतजार करती हुई उसने आंखें मूंद कर पीछे दीवार से सिर टिका दिया। उसे अंदाजा था कि उसका नंबर देर से आएगा। शहर का सबसे व्यस्तम अस्पताल है, मनोचिकित्सा का। वह पागल नहीं है, मगर कुछ है जो उसे पागल बनाए हुए है। कोई बीमारी नहीं, सबकुछ दुरुस्त है...फिर क्यों कहीं भी खिंची चली जाती है। बगल में बैठी हुई उसकी खास दोस्त नेहा अपने मोबाइल में बिजी थी। सपना, सोच में डूबी, अपना ही आकलन कर रही थी