रिश्तों की डोर

(13)
  • 10.4k
  • 1.9k

रिश्तों की डोर ------------------- माधुरी पिछले कुछ दिनों से बहुत परेशान थी। मन में उमड़ते भाव, डूबती हुई साँसें मानो किनारा पाने को हिचकोले खा रही थीं। जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित हो जाता है तो जड़ चेतन मन भी डगमगाने लगता है । वैसे उसने अब फैसला कर लिया था कि, आज शाम को नवीन से सारा स्पष्टीकरण लेकर ही रहेगी। शाम को नवीन ऑफिस से आने के पश्चात जब सहज हुआ, माधुरी ने बिना कोई भूमिका बाँधे कहा, "नवीन मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी हैं। " "हाँ हाँ क्यों नहीं ? बोलो ना क्या बात है?" "