रैग पिकर

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रैग पिकर अनेकों कामों के साथ-साथ एक और काम था जो जीवन में मुझसे कभी न हो सका और वह था गुरू बनाना। अक्सर सुनने में आता था कि फलां के गुरू महाराज पधारने वाले हैं या उनके गुरू महाराज के प्रवचन इस समय विलायत में चल रहे हैं या ढिकां के गुरू महाराज ने समाधि ले ली है। गुरू महाराज पधार रहे हों तो पिताजी को, जो जिस ग्रेड के पिता हुये, पंडाल में फट्टी बिछाने या बिस्तर लगाने या फलाहार की व्यवस्था करने का जिम्मा दे दिया जाता था, गोया कि ऐसे गुरू पर तो हजार बाप कुर्बान!