कवियों के सरोकार

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मंच के कवि उभरते हुए युवा कवि जिसे देखा उसे पकड़कर ले गये और अपनी कविता पेल दी। हालांकि कविता सुनाने के पहले चाय कचौड़ी का आदेश दे मारते थे। उन्हें फायदा यह हो जाता था कि एक श्रोता को ही चाय कचौड़ी खिलानी पड़ती थी और उसे माध्यम बनाकर वे पूरे रेस्त्रां के ग्राहकों को अपनी कविताएं सुना डालते थे। सुनाने के बाद, वे प्रतिक्रिया जानने की गरज से, लोगों के चेहरे देखते । कोई न कोई कह ही बैठता - वाह साब! आप तो कमाल की कविता करते है। वे जब कभी अखबार देखते केवल